प्रवासी कौन है ?
प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है
जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये,
एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में में निवास करता है
अर्थात परदेशी
हाँ शायद !
परदेशी ही ....
देख विडंबना
अपने ही देश में
अपने ही वतन में एकाएक प्रवासी हो गए
वाह री महानगरीय संस्कृति.....
चलो शाब्दिक अर्थ को छोड़ते हैं नाम में क्या रखा है
ऐसे ही कोई क्यों जाता है
अपना गांव, अपनी जन्मभूमि छोड़कर
कोई तो मजबूरी होगी
सबकी अपनी अपनी अलग अलग कहानियां है
सपना सबका एक ही था ……
अपने परिवार का अच्छा भविष्य
बच्चों की अच्छी शिक्षा
माता पिता का अच्छा इलाज
मगर यह हो न सका
और अब लौट रहा है अपने गांव अपने प्रदेश में
खाली पेट खाली हाथ
जिस प्रदेश को, जिस शहर को
इस मेहनतकश ने सींचा अपने खून पसीने से
जो मशीन बना दिन-रात काम करते करते
एक सुनहरे भविष्य की आशा में
मगर इस महामारी के दौर में हमेशा की तरह
पिसा एक गरीब इंसान...................
कर्मभूमि दे न सकी दो वक्त की रोटी,और सिर ढकने को छत
किस काम की ऐसी उन्नति और विकास
सोचो, मनन करो, चिंतन करो
हे मनीषयों ! बुद्धिजीवियों !
नेता-अभिनेता ऐशों- आराम से
(कुछ अपवादों को छोड़कर)
छुट्टियां मना रहे हैं
इस महामारी में
किसकी बदौलत
इस प्रवासी मजदूर की बदौलत
हां इस प्रवासी मजदूर की बदौलत है
शुभकामना है, आशा है, विश्वास है,दृढ़ विश्वास है
हे श्रमिक देव अगर आप ठान ले
तो कुछ भी हो सकता है
उठो, जागो !
हे श्रमिक देव
कुशल है,दक्ष है,निपुण है,योग्य है,सामर्थवान है
आप.........
योद्धा राजा नायक कुछ नहीं करेंगे
मात्र खोखले वायदे, आश्वासन और कुछ खैरात!
रणभूमि में स्वयं उतरना पड़ेगा
अपने लिए स्वयं संघर्ष करना पड़ेगा
उठो,जागो
पहले दूसरों के लिए काम किया
अब अपने लिए काम करो
हे वीर, साहसी श्रमिक
बनाओ अपने को सबल
बदल दो खांडवप्रस्त को इन्द्रप्रस्थ में
यही शुभकामनाएं ..........
हे श्रमिक,जय श्रमिक, जय श्रमिक
अमित
27.05.2020