ऐसे
सुर का प्रयोग किया
जो मुझे अप्रिय है,
जो मेरे अनुकूल नहीं है
उन्होने कहा सिर्फ
एक बार,
मात्र एक
बार
मेरे मन ने मुझसे कहा
मेरे मन ने मुझसे कहा
कितनी बार?
उस वार्तालाप
को...
मेरे मन ने कितनी बार
मेरे मन ने कितनी बार
पुर्नावृत्ति की एक
बार,
बार-बार, अनेक बार
बार-बार, अनेक बार
एक पल, एक छण, एक दिन
या फिर वर्षो तक!
या फिर वर्षो तक!
उनके सुर ने आहत
किया
मेरे अर्न्तमन को एक
बार
मैंने अपने को आहत किया
कितनी बार?
कितनी बार?
बार-बार अनेक बार...
विचारों के पैण्डुलम ने
विचारों के पैण्डुलम ने
कितनी बार आयामों की आवृत्ति की!
विचारा, मनन किया, सोचा ,
मुझे क्या ग्रहण
करना है?
क्या नहीं ?
क्या नहीं ?
मेरे अर्न्तमन में,
कौन प्रवेश करेगा, कौन नहीं ?
कौन प्रवेश करेगा, कौन नहीं ?
कौन सी
भावनायें, कौन से शब्द,
कौन सी ध्वनि
कौन सी ध्वनि
ये निर्णय मेरा है
किसका प्रवेश वर्जित है,
किसका प्रवेश वर्जित है,
किस का नहीं,
ये मेरा, सिर्फ मेरा ही फैसला है।
ये मेरा, सिर्फ मेरा ही फैसला है।
मैं उनके शब्द ग्रहण
करू
या फिर छोड़ दूँ !
ऐसे ही सन्नाटे में...
या फिर छोड़ दूँ !
ऐसे ही सन्नाटे में...
उनको ही कचोटने
के लिए
उनके की शब्द,
उनकी कर्कश ध्वनि!
ऐसे ही सन्नाटे में...
उनके की शब्द,
उनकी कर्कश ध्वनि!
ऐसे ही सन्नाटे में...
अप्रिय
वार्तालाप,
उनकी कर्कश ध्वनि
उनकी कर्कश ध्वनि
उनकी कर्कश ध्वनि तो
बस एक तरंग हैं मात्र !
बस एक तरंग हैं मात्र !
मेरा अपने अर्न्तमन
पर
किन्तु यह भी सत्य है
उनके शब्द, उनकी भावना ,
उनकी कर्कश ध्वनि,
उन्ही मे ही सृजित हुई है
उनके ही पास है ।
मैं उसे धारण करूँ अथवा नहीं
ये मेरा ,सिर्फ मेरा फैसला है
और यही सच है।
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक ह