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Tuesday, 28 June 2016

SARKAR सरकार





कौन है सरकार?
क्या है सरकार?
प्रश्न कौंधता है
मेरे मन में
बार- बार
अनेक बार !

संसद राज्यसभा पंचायत कार्यपालिका
जनता के प्रतिनिधि !
मेरा मत
आपका मत या
फिर उस किसान का मत
जिसका बाढ़ में बह जाता है  सब कुछ
नहीं बहता है
तो सिर्फ कर्ज़ !

कौन है सरकार
मुग़ल गार्डन में उभरे पदचिन्ह
या फिर गार्डन को
पुष्पित - पल्लवित करता माली
गेट के बाहर खड़ा सुरक्षाकर्मी
गटर में उतरा सफाईकर्मी

या फिर अनुबंधित मजदूर की रोटी से
नमक चुरा
रिश्वत देता ठेकेदार!
या फिर
सांपसीड़ी का खेल खेलते
अफ़सर-बाबू !

सब देखता हूँ
खुली आँखों से
फिर भी बंद कर लेता  हूँ आँखें
कबूतर के मानिंद
परन्तु जब कम होती है एक इकन्नी
मेरे मानदेय से खुल जाती है
कानून की पोथी और
सूचना का अधिकार

कौन है सरकार प्रेमचंद की
पञ्च-परमेश्वर !
अमिताभ की सरकार !
या मै आजाद हूँ !

अर्जुन का गांडीव
अभिमन्यू के रथ का पहिया
कृष्ण का चक्रपांचजन्य
और गीता
सब है हमारे पास
फिर क्यूँ बेबस हूँ मै?

क्या?
संजाल है सरकार
समूह है सरकार
जंजीर है सरकार
कारवां है सरकार
या फिर कारवां के
अंतिम छोर पे खड़ा
मेरा दोस्त है सरकार !
हाँ शायद
मेरा दोस्त है सरकार

आओ इसका भा बाँट लें
ये मद्दम है  उभार दें
संवार दें प्रसार दें
आओ इस अंतिम इकाई
को उठा दे ढ़ांचा
स्वत ही उठ जायेगा

राम सेतु
निर्माण में गिलहरी का
अकिंचन योगदान वैसे ही
मेराआपका
हम सबका एक छोटा सा
प्रयास है सरकार
हाँ यही है सरकार
हाँ यही है सरकार

अमित






Saturday, 25 June 2016

किसान



कृषक, भूमिपुत्र, अन्नदाता,
ग्रामीण, गँवार बेगार, कंजूस
हाँ कंजूस भी!
शब्दों से हुआ भ्रमित !
आखिर है कौन किसान!

वह भूमिपुत्र जिसका पेट नही भर पाती
उसकी माँ!
सबकी दुकाने चलती है
उसके पसीने से
मेरी,आपकी, हम सब की।
इस बेगार का बकाया बनता है
आन्दोलन और राजनैतिक खाड़ा 

सियासतदारों के लिए एक खेल है
किसान!
अपनी दुकान चलाने का 
साधन है मात्र!

धरती का ऋण उतारते-उतारते
स्वयं लटक जाता है नीम के पेड़ से
फिर भी नहीं उतरता है उसका ऋण
बदल जाते हैं वारिस बही खातों में...

बाढ़,अकाल,अनावृष्टि, दैविकआपदा...
तब खुलता है!
सरकारी सौगातों का पिटारा...

फिर शुरू होता है खेल!
लापता आँकड़ो का... 
सिद्धान्त सूत्र और परिभाषाएं
धरी रह जाती हैं 
जब पटवारी चौपाल पर लगाता है
अपनी दुकान!
खुली सौदे बाजी में होते सब
माला-माल 
रह जाता है बस एक कँगाल !

देख विडम्बना
मेरे देश के अन्नदाता की। 

गढ़ कुछ ऐसी युक्ति,
सूत्र और परिभाषाएं यार! 
पलट जाये बाजी काश |

मेरे देश का किसान हो जाये खुशहाल।
मेरे देश का किसान हो जाये खुशहाल।
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Tuesday, 21 June 2016

Mann!!

 मन !

मन तो बच्चा है
कैसा ?
अबोध
चंचलनटखट
जो मेरी बात मानता ही नहीं
तो फिर कोई क्यों?
मेरी बात माने !

मन को आवश्यकता है
दुलार की वात्सल्य की
सर्वकार्यो के साथ-साथ
माँ की प्राथमिकता है
अपना बच्चा
मेरी प्राथमिकता !
मेरा अपना मन... 

मन पर सकारात्मक नियंत्रण
मन से उपजी भावनाओं,
संवेगोंआवेगों का 
स्वतशुद्ध आचरण
जैसे माँ की मीठी लोरी
से शान्त होता बच्चा
वैसे ही मेरा अपना मन 
स्वयं की थपकी से शांत 
पवित्र निर्मल होता 
मेरा मन !


अमित
   मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।



Friday, 17 June 2016

डर !






डर !
एक विचार है मात्र
भविष्य के प्रति नकारात्मक
दृष्टिकोण है मात्र।
एक कल्पना है
मन की उपज है
अनिष्ट की आशंका है
मात्र।

डर न सकारत्मक है
न ही प्रेरणादायक
डर के सखा है चिंता,
तनाव दवाब और अवसाद
    
डर एक दर्द है
डर की दवा है
समस्या का सामना,
मुकाबला और पराजित कर,
समाप्त कर देना।

भय को देखना हैं
पलायन नहीं उससे
साक्षात्कार करना हैं
आँखो मे आँखे डाल देखना है
डर स्वयं विसर्जित होने
लगेगा...
रह जायेगा सिर्फ चेतन अभय
जिसकी कोई मृत्यु नहीं!


निडर जीवन मे,
सौन्दर्य “सुमन
पुष्पित पल्लवित होते है
अभय बनो निडर बनो
मित्रों !डर तो बस
एक कल्पना मात्र है
एक कल्पना मात्र है।
अमित
                मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।


प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...