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Friday, 17 June 2016

डर !






डर !
एक विचार है मात्र
भविष्य के प्रति नकारात्मक
दृष्टिकोण है मात्र।
एक कल्पना है
मन की उपज है
अनिष्ट की आशंका है
मात्र।

डर न सकारत्मक है
न ही प्रेरणादायक
डर के सखा है चिंता,
तनाव दवाब और अवसाद
    
डर एक दर्द है
डर की दवा है
समस्या का सामना,
मुकाबला और पराजित कर,
समाप्त कर देना।

भय को देखना हैं
पलायन नहीं उससे
साक्षात्कार करना हैं
आँखो मे आँखे डाल देखना है
डर स्वयं विसर्जित होने
लगेगा...
रह जायेगा सिर्फ चेतन अभय
जिसकी कोई मृत्यु नहीं!


निडर जीवन मे,
सौन्दर्य “सुमन
पुष्पित पल्लवित होते है
अभय बनो निडर बनो
मित्रों !डर तो बस
एक कल्पना मात्र है
एक कल्पना मात्र है।
अमित
                मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।


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