उद्यान, पेड़ - पौधे, लताएँ-बेले,
अनेक –जातियाँ , प्रजातियाँ
भिन्न-भिन्न
संस्कृतियाँ,....
अनेक भाषाएँ व बोलियाँ
रीति-रिवाज ,तीज –त्यौहार
हजारों प्रकार कें
व्यंजन
अलग – अलग
सभ्यताऐ
अनेक धर्म व संप्रदाय
भिन्न-भिन्न भौगोलिक स्थितियाँ
भिन्न-भिन्न भौगोलिक स्थितियाँ
अमित विभिन्नताओं के
वावजूद
एक सामञ्ज्स्य है एक
संतुलन है
एक दूसरे की विभिन्नता
स्वीकार है
सभी को आत्मसात करने
का दर्शन है
हमारी संस्कृति
ऐसा है हमारा भारतवर्ष
प्रवेश करते ही अनेकता
मे एकता की
अद्भुत सुगंध का अहसास,
जिसका वर्णन कर पाना
....
न आपके बस की बात है
और न ही मेरे।
मेहमान-नवाजी की
नैतिकता की पराकाष्ठा
का अहसास
ऐसा ही पुष्प
वाटिका है मेरा
भारत वर्ष
परंतु आज !
भिन्न-भिन्न स्वर व सुर
सामञ्ज्स्य व संतुलन
का अभाव
आत्मसात करने की शक्ति
का अभाव
असहनीय
अनैतिकता का अहसास
कुछ स्वार्थी तत्वों
द्वारा,
अपने हितों के अनुसार...
अपने हितों के अनुसार...
धर्म व
पंथ की तुष्टिकृत व्याख्या व विवेचना !
दूसरों
के अस्तित्व को नकारना
फलस्वरूप...
जगह
– जगह
मासूमों के रक्त से
रक्त
रंजित भूमि
...
क्या
ऐसा ही हम चाहते हैं ?
नहीं
! कदापि नहीं ।
किसी
एक धर्म
व पंथ
या
विशेष व्यक्तित्व की
बपौती
या विरासत नहीं हैं
मेरा भारत
वर्ष,
हमारा भारत वर्ष
कण- कण पर मेरा भी
उतना ही
अधिकार है
जितना, प्रथम बिन्दु का !
हमारी, हम सबकी एक सांझी
संस्कृति व विरासत
हैं ।
अतुल्य
भारत, जय हिन्द
जय भारत ।
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।
No comments:
Post a Comment