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Friday, 17 February 2017

अटूट एकता


एक दिन टहलते हुए देखा
श्वान के नवजात बच्चों को
सर्द ठण्ड मे अपनी माँ से
गुथे हुए देखा...
बर्फीली हवाओ से वचाव के वास्ते
एक दूसरे के सहयोग से
अपनी उर्जा के रिसाव
को अवरुद्द कर
भीषण ठण्ड को पराजित करने मे
सफल हो रहे हैं।

कुछ समयांतराल बाद
श्वान के बच्चे
अपनी माँ के बिना
सभी बच्चे आपस मे
गुथ कर अपनी एकत्रित
ऊर्जा से ठण्ड को पराजित करने में
सक्षम हो रहे हैं।

शायद माँ ने बच्चों को सक्षम
होने के लिए ही अकेला छोड़ा हैं

अचनक विचार कौंधा!
हम भी अपनी संगठित एकाग्र
ऊर्जा से
किसी भी परिस्थिति को
पराजित करने में सक्षम हैं।
अत: हम सब एक हैं।

मर्ज भी हम हैं
मरीज भी हम हैं
दर्द भी हम हैं
दव़ा भी हम हैं
हकीम भी हम ही हैं
एकता के एक सूत्र मे बंध
अटूट चट्टान भी हम ही हैं

अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।


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