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Wednesday, 12 April 2017

चक्रव्यूह


चक्रव्यूह मे है अभिमन्यु
ऐसा सोचते हैं वे,
मगर ऐसा है नहीं
व्यूह रचना की जा रही है
अनैतिकता की नींव पर
जो कि स्थायी नहीं है ,ण-भंगुर हैं ।

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह धव्स्त करना
माँ के गर्भ में  ही सीख लिया था
आज! अभिमन्यु ने  व्यूह रचना
निर्मित होने से पहले ही,
समस्त द्वारों को धवस्त कर ,
चक्रव्यूह से बाहर आना सीख लिया है
अपने पिताश्री से ...

आज का अभिमन्यु  
“कलाम” के वाणों से सुसज्जित है
उसके पास कृष्ण का चक्रपांचजन्य और गीता है
संजय की दिव्य दृष्टि , 
ध्वनि  सँजोने की शक्ति है
महारथियों की मूक अकर्मण्यता की...
 ध्वनि सुरक्षित है

क्यों भूल जाते हैं वे,
अभिमन्यु के साथ उसके मित्र ,
स्नेहीजन शुभ –चिंतक व निश्चल आवाम हैं
जो सभी चक्रव्यूह भेदना व
चक्रव्यूह से बाहर आना जानते हैं
क्योंकि उनके पास हैं 
सूचना का अधिकार
अभी, अभिमन्यु शान्त है

स्वयं सक्षम है ,सभी महारथियों पर...
अकेला ही भारी है
बस प्रतीक्षा है!
अपने पिताश्री के आदेश की
चक्रव्यूह की संरचना करने वाले
क्यों भूल जाते हैं इतिहास को,
अर्जुन ने क्या हश्र किया था
महारथियों  का...
चाहे कोई अपना हो या पराया
प्रिय हो या अप्रिय
सभी को प्रकृति की नियति ने
काल का ग्रास बनाया !

यह सत्य है,परम सत्य है
प्रकृति न्याय करती है
अवश्य करती है
आज नहीं तो,कल
अब कुछ प्रतीक्षा करो बस !
मित्रों!
बस कुछ पल की देरी है
पर्दा गिरने वाला है नाटक का
चक्रव्यूह मे अभिमन्यु
अमित
 मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

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