ऐसा सोचते हैं वे,
मगर ऐसा है नहीं
अनैतिकता की नींव पर
जो कि स्थायी नहीं है , छण-भंगुर हैं ।
माँ के गर्भ में ही
सीख लिया था
निर्मित होने से पहले ही,
समस्त द्वारों को धवस्त कर ,
अपने पिताश्री से ...
आज का अभिमन्यु
“कलाम” के वाणों से सुसज्जित है
“कलाम” के वाणों से सुसज्जित है
उसके पास कृष्ण का चक्र, पांचजन्य और गीता है
महारथियों की मूक अकर्मण्यता की...
ध्वनि सुरक्षित है
ध्वनि सुरक्षित है
क्यों भूल जाते हैं वे,
अभिमन्यु के साथ उसके मित्र
,
स्नेहीजन शुभ –चिंतक व
निश्चल आवाम हैं
क्योंकि उनके पास हैं
सूचना का अधिकार
सूचना का अधिकार
अभी, अभिमन्यु शान्त है
बस प्रतीक्षा है!
अपने पिताश्री के आदेश की
अपने पिताश्री के आदेश की
क्यों भूल जाते हैं इतिहास को,
अर्जुन ने क्या हश्र किया था
महारथियों का...
चाहे कोई अपना हो या पराया
प्रिय हो या अप्रिय
सभी को प्रकृति की नियति ने
काल का ग्रास बनाया !
यह सत्य है,परम सत्य है
प्रकृति न्याय करती है
अवश्य करती है
आज नहीं तो,कल…
अब कुछ प्रतीक्षा करो बस !
मित्रों!
बस कुछ पल की देरी है
पर्दा गिरने वाला है नाटक का
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