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Monday, 15 May 2017

बढ़े-चलो


उपहासों विरोधों  से निकल जाएगें
हम सबक़ों डगर पर चला ले  जाएगें
शक्ति -शौर्य  उमंगों से सजे हैं
वीरों के साहस से भरे हैं
हिमाद्रि से सागर की ओर बढ़े हैं
जो ठानी कर गुज़र जाएगें

विवादों से बच निकले हैं
स्वीकृति मार्ग पर चले हैं
विश्वाश –एकता मे बधें हैं
नित्य नयी सृजनता है
आयामों की नवीनता है
जिससे अंकुर पोषित है
पुष्पित है ,प्लवित है
उस विराटता को प्रणाम कर जाएगें\

आओ ! इसको संवार दें
यह मद्दम है , उभार दें
जो उज्ज्वल है, निसार दें
प्रकाश को प्रसार दें,
दीप की लौ , निष्कंप कर जाएगें
हम सबक़ों डगर पर चला ले जाएगें 
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

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