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Monday, 12 December 2016

कविता लिखने का फंडा



कविता लिखने का शौक जब चर्राया
तब वरिष्ठ कवि ने नुस्खा है फरमाया
शब्द रस अलंकर नही किसी के होते
भाव भावना  भी समाज से हम लेते


किसी  प्रतिष्ठित कवि की  शैली चुराओ
शब्दों को जोड़तोड़  कर कविता बनाओ
इधर उधर से  भाव और शब्दों को तोड़ा
इस  प्रकार  हमने  कविताओं  को जोड़ा


कविता रच हम मंच पर सुना रहे थे
पैर सूखे पेड़ के पत्ते  से काँप रहे थे
आवाज़ भी साथ नहीं दे  रही थी
हालत बद से बदतर हो रही थी


देख हमेंकन्याएं मंद -मंद मुस्का रहीं थी
मित्रों को ये अदा सहन नही हो पा रही थी
मित्र ताली पीट -पीट  खिल्ली उड़ा रहे थे
श्रोता  गफलत में  तालियां   बजा रहे थे

फ्लॉप होते- होते , बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गये
अन्ततोगत्वा,कवियों की जमात में शामिल हो गये |

अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।






Thursday, 8 December 2016

वृक्ष की व्यथा



मत लिखो मुझ पर
कोई कविताकहानी या आलेख
नही गढ़ों कोई कलाकृति              
नही करोमेरे संरक्षण के लिए
आन्दोलन धरना या प्रदर्शन
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में!


जहाँ नही पहुँच सके
कविलेखक और संरक्षक के ठेकेदार?
क्योकि समस्त प्रक्रिया में
मेरा ही बलिदान होगा
या फिर  उपयोग होगा
मेरे ही अंगों का
मत जलाओ मेरे अवशेषों को...
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !


ताकि धरा को पोषित व उर्वर बना
मिटा सकूँ मानव की भूख ?
रहने हो बस मुझे ऐसे ही अकेला
जंगल की अनेक जाति प्रजातियों के संग
विकास के नाम पर मत परिवर्तित करो
मुझे कंक्रीट के जंगल में
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !


ताकि उत्सर्जित कर सकूँ प्राण वायु
आपके लिए
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
नितांत अकेला 
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है। 

Tuesday, 6 December 2016

कतारबद्ध है हिंदुस्तान आज!




कतारबद्ध है हिंदुस्तान आज!
स्वानुशासन से 
दीपावली की झालरों की भांति
जगह - जगह कतारें ही कतारें,
कतारें खुश है, प्रसन्न है, उत्साहित है
अनेक कठिनाइयों के बावजूद 
उफ़ तक नही है !
चेहरों पर कोई विषाद आक्रोश के
चिन्ह तक नही है |
सोच के ये ...
शायद अच्छे दिन आएंगे !


नरेन्द्र (राजा) का फैसला है ,
स्वागत है विश्वास है
अत: हिंदुस्तान कतारबद्ध है
एक प्रश्न गूंजता है सन्नाटे में !
मगरमच्छों को पकड़ने के वास्ते
जलाशयों को जलविहीन करना
क्या आवश्यक है ?
मगर, मगर तो उभयचर है
जलचर, जल की एक -एक बूँद के लिए,
कतारबद्ध है  फिर भी
मेरा हिंदुस्तान खुश है
धैर्यपूर्वक लयबद्ध स्थिर अडिग है
सोच के ये  ...
शायद अच्छे दिन आयेंगे !

श्वेत- श्याम की प्रक्रिया में ,
मगरमच्छों द्वारा निगला गया द्रव्य
क्या उगला गया है ?
मगरमच्छ नियम कायदे कानून ,
आचारसंहिता से ऊपर है !
उन्हें कोई भय नही, डर नही !
यह भी सच है जल में रहना है
तो मगर से बैर नही!
विचार- विमर्श, मंत्रणा हुई
आदेश पारित हुआ |
आधा उगलो, आधा पचा लो
हम तुम भाई भाई
फिर भी एक प्रश्न गूंजता है सन्नाटे में 
कतारें ठगी तो नही जा रही है ?
इस भ्रम में की !
शायद अच्छे दिन आयेंगे !

सन्नाटे में एक संकल्प ये भी है
अगर कतारें ठान लें कि
अच्छे दिन आएंगे तो
अवश्य आयेगें, अवश्य आयेगें |
क्यूंकि हिन्दुस्तान कतारों का है
मगरमच्छों का नही
अच्छे दिन आएंगे, ज़रूर आएंगे
तथास्तु |
 अमित 
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है। 


प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...