कविता लिखने का शौक जब चर्राया
तब वरिष्ठ कवि ने नुस्खा है फरमाया
शब्द रस अलंकर नही किसी के होते
भाव भावना भी समाज से हम लेते
किसी प्रतिष्ठित कवि की शैली चुराओ
शब्दों को जोड़तोड़ कर कविता बनाओ
इधर उधर से भाव और शब्दों को तोड़ा
इस प्रकार हमने कविताओं को जोड़ा
कविता रच हम मंच पर सुना रहे थे
पैर सूखे पेड़ के पत्ते से काँप रहे थे
आवाज़ भी साथ नहीं दे रही थी
हालत बद से बदतर हो रही थी
देख हमें, कन्याएं मंद -मंद मुस्का रहीं थी
मित्रों को ये अदा सहन नही हो पा रही
थी
मित्र ताली पीट -पीट खिल्ली उड़ा रहे
थे
श्रोता गफलत में तालियां बजा रहे थे
फ्लॉप होते- होते , बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गये
अन्ततोगत्वा,कवियों की जमात में शामिल हो गये |
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।
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Monday, 12 December 2016
कविता लिखने का फंडा
Thursday, 8 December 2016
वृक्ष की व्यथा
मत लिखो मुझ पर
कोई कविता, कहानी या आलेख
नही गढ़ों कोई कलाकृति
नही करो, मेरे संरक्षण के लिए
आन्दोलन धरना या प्रदर्शन
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में!
जहाँ नही पहुँच सके
कवि, लेखक और संरक्षक के ठेकेदार?
क्योकि समस्त प्रक्रिया में
मेरा ही बलिदान होगा
या फिर उपयोग होगा
मेरे ही अंगों का
मत जलाओ मेरे अवशेषों को...
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
ताकि धरा को पोषित व उर्वर बना
मिटा सकूँ मानव की भूख ?
रहने हो बस मुझे ऐसे ही अकेला
जंगल की अनेक जाति प्रजातियों के
संग
विकास के नाम पर मत परिवर्तित करो
मुझे कंक्रीट के जंगल में
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
ताकि उत्सर्जित कर सकूँ प्राण वायु
आपके लिए
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
नितांत अकेला ।
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।
Tuesday, 6 December 2016
कतारबद्ध है हिंदुस्तान आज!
कतारबद्ध है हिंदुस्तान आज!
स्वानुशासन से
दीपावली की झालरों की भांति
जगह - जगह कतारें ही कतारें,
कतारें खुश है, प्रसन्न है, उत्साहित है
अनेक कठिनाइयों के बावजूद
उफ़ तक नही है !
चेहरों पर कोई विषाद व आक्रोश के…
चिन्ह तक नही है |
सोच के ये ...
शायद अच्छे दिन आएंगे !
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नरेन्द्र (राजा) का फैसला है ,
स्वागत है विश्वास है
अत: हिंदुस्तान कतारबद्ध है
एक प्रश्न गूंजता है सन्नाटे में !
मगरमच्छों को पकड़ने के वास्ते
जलाशयों को जलविहीन करना
क्या आवश्यक है ?
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मगर, मगर तो उभयचर है
जलचर, जल की एक -एक बूँद के लिए,
कतारबद्ध है फिर भी…
मेरा हिंदुस्तान खुश है
धैर्यपूर्वक लयबद्ध स्थिर व अडिग है
सोच के ये ...
शायद अच्छे दिन आयेंगे !
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श्वेत- श्याम की प्रक्रिया में ,
मगरमच्छों द्वारा निगला गया द्रव्य
क्या उगला गया है ?
मगरमच्छ नियम कायदे कानून ,
आचारसंहिता से ऊपर है !
उन्हें कोई भय नही, डर नही !
यह भी सच है जल में रहना है
तो मगर से बैर नही!
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विचार- विमर्श, मंत्रणा हुई
आदेश पारित हुआ |
आधा उगलो, आधा पचा लो
हम तुम भाई भाई
फिर भी एक प्रश्न गूंजता है सन्नाटे में …
कतारें ठगी तो नही जा रही है ?
इस भ्रम में की !
शायद अच्छे दिन आयेंगे !
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सन्नाटे में एक संकल्प ये भी है
अगर कतारें ठान लें कि
अच्छे दिन आएंगे तो
अवश्य आयेगें, अवश्य आयेगें |
क्यूंकि हिन्दुस्तान कतारों का है
मगरमच्छों का नही
अच्छे दिन आएंगे, ज़रूर आएंगे
तथास्तु |
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।
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