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Thursday, 8 December 2016

वृक्ष की व्यथा



मत लिखो मुझ पर
कोई कविताकहानी या आलेख
नही गढ़ों कोई कलाकृति              
नही करोमेरे संरक्षण के लिए
आन्दोलन धरना या प्रदर्शन
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में!


जहाँ नही पहुँच सके
कविलेखक और संरक्षक के ठेकेदार?
क्योकि समस्त प्रक्रिया में
मेरा ही बलिदान होगा
या फिर  उपयोग होगा
मेरे ही अंगों का
मत जलाओ मेरे अवशेषों को...
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !


ताकि धरा को पोषित व उर्वर बना
मिटा सकूँ मानव की भूख ?
रहने हो बस मुझे ऐसे ही अकेला
जंगल की अनेक जाति प्रजातियों के संग
विकास के नाम पर मत परिवर्तित करो
मुझे कंक्रीट के जंगल में
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !


ताकि उत्सर्जित कर सकूँ प्राण वायु
आपके लिए
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
नितांत अकेला 
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है। 

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