मत लिखो मुझ पर
कोई कविता, कहानी या आलेख
नही गढ़ों कोई कलाकृति
नही करो, मेरे संरक्षण के लिए
आन्दोलन धरना या प्रदर्शन
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में!
जहाँ नही पहुँच सके
कवि, लेखक और संरक्षक के ठेकेदार?
क्योकि समस्त प्रक्रिया में
मेरा ही बलिदान होगा
या फिर उपयोग होगा
मेरे ही अंगों का
मत जलाओ मेरे अवशेषों को...
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
ताकि धरा को पोषित व उर्वर बना
मिटा सकूँ मानव की भूख ?
रहने हो बस मुझे ऐसे ही अकेला
जंगल की अनेक जाति प्रजातियों के
संग
विकास के नाम पर मत परिवर्तित करो
मुझे कंक्रीट के जंगल में
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
ताकि उत्सर्जित कर सकूँ प्राण वायु
आपके लिए
बस रहने दो ऐसे ही सन्नाटे में !
नितांत अकेला ।
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।
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