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Saturday, 24 September 2016

पहाड़ी !



पहाड़ी !
तुम्हारा चेहरा देखा
मुस्कराता हुआ
चेहरा देखा

ओस को बूंदों से
भीगी कली में
तुम्हारा नहाया हुआ
चेहरा देखा

मिट्टी की सोंधी-सोंधी
खुशबु से सरोबार
तुम्हारा चेहरा देखा

बादल ने...
स्पर्श चाहा तुम्हारा
निरूउत्तर  लाजवंती मे
तुम्हारा चेहरा देखा
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।


Wednesday, 7 September 2016

मन

 मन !

मन तो बच्चा है
कैसा ?
अबोध
चंचलनटखट
जो मेरी बात मानता ही नहीं
तो फिर कोई क्यों?
मेरी बात माने !

मन को आवश्यकता है
दुलार की वात्सल्य की
सर्वकार्यो के साथ-साथ
माँ की प्राथमिकता है
अपना बच्चा
मेरी प्राथमिकता !
मेरा अपना मन... 

मन पर सकारात्मक नियंत्रण
मन से उपजी भावनाओं,
संवेगोंआवेगों का 
स्वतशुद्ध आचरण
जैसे माँ की मीठी लोरी
से शान्त होता बच्चा
वैसे ही मेरा अपना मन 
स्वयं की थपकी से शांत 
पवित्र निर्मल होता 
मेरा मन !


अमित
   मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।

Sunday, 4 September 2016

शिक्षक दिवस (Teacher's Day)





शिक्षक दिवस ,
 एक संकल्प का दिवस
शिक्षकों के प्रति ,
आभार का दिवस
शिक्षाओं को...
धारण करने का दिवस
समय का एक चक्र पूरा हुआ,
मंजिल आयी।
बधाई है! बधाई है! बधाई है!

एक संकल्प का पर्व  
संकल्प पर कुछ 
दान नहीं करोगे
मित्र!
देने को कुछ नही हैं?
तुम्हारे पास
कृपण ना बनोंमित्र!
असत्य मत कहों
मुझ से भी और 
अपने आप से भी,
ऐसा कोई नहीं
जिसके पास देने को कुछ नहीं!

न सही लौकिक सम्पदा
ज्ञान का, सेवा का कोष तो है
उसी में से मुक्त हस्त लुटाओ।
हाँलुटाने से 
कोष मे वृद्घि होती है
दिन दुगनी रात चौगुनी।

प्यार का एक मीठा बोल
सांत्वना का एक बोल
सेवा का एक पल
सहारे का एक तिनका
आँखों में अपनेपन का
मौन संकेत
भंवर में फँसी नाव को भी
किनारे लगा देता हैं दोस्त !
सहमों हिचको मत
बहुत काम बाकी पड़ा हैं!
वातायन के पट् खोलों
किरणों को भीतर आने दो
खुले आसमान के नीचे आओ
देखोंमंजिल आयी हैं
बधाई है! बधाई है! बधाई है!

अमित
    मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।




मैम मुझे अच्छी लगती हैं


मैम  मुझे अच्छी लगती हैं 
कठोरता मुझे अच्छी लगती है 
दृढ़ता मुझे अच्छी लगती है 
ठोस के अणु
अनुशासन से दृढ़ता से बंधे होते हैं 
इसलिए मुझे मैम अच्छी लगती है |

गैस के अणु
एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते
आवारा छात्रों की तरह, घुमते रहते हैं 
कठोरता का पर्याय हैअनुशासन 
अत; मैम मुझे अच्छी लगती हैं 
पल-पल फिसलता रहता हूँ 
शैवाल की चट्टानों पर
मुझे चलना नही आता है
इसलिए फिसल जाता हूँ

कमी है दृढ़ता की, कठोरता की,
स्वानुशासन की..
विचारों में मूंगे की चट्टान जैसी 
दृढ़ता हो तो,  आपके पद-चिह्न
चट्टानों पर उभर आयेंगें |
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Thursday, 1 September 2016

प्रार्थना


मंदिर में एक चेहरा
देखा!
जिसके चेहरे पर
विषाद असंमजस
और याचना के 
स्पष्ट भाव थे।
उसके संवाद हीन
चेहरे ने
मुझे भावनाओ से
ओत-प्रोत कर दिया


मै उसकी ओर देखने का
साहस न कर सका      
संम्भवतयमेरी आँखो में देख
उसकी आँखो मे
सागर उमड़ने
लगता
इसी मध्य न जाने कैसे!
उसकी प्रार्थना मे
मेरी प्रार्थना भी शामिल हो गयी।                                                                                                      अमित 
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।


प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...