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Saturday, 24 September 2016

पहाड़ी !



पहाड़ी !
तुम्हारा चेहरा देखा
मुस्कराता हुआ
चेहरा देखा

ओस को बूंदों से
भीगी कली में
तुम्हारा नहाया हुआ
चेहरा देखा

मिट्टी की सोंधी-सोंधी
खुशबु से सरोबार
तुम्हारा चेहरा देखा

बादल ने...
स्पर्श चाहा तुम्हारा
निरूउत्तर  लाजवंती मे
तुम्हारा चेहरा देखा
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।


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