मंदिर में एक चेहरा
देखा!
जिसके चेहरे पर
विषाद असंमजस
और याचना के
स्पष्ट भाव थे।
उसके संवाद हीन
चेहरे ने
मुझे भावनाओ से
ओत-प्रोत कर दिया
मै उसकी ओर देखने का
साहस न कर सका
संम्भवतय: मेरी आँखो में देख
उसकी आँखो मे
सागर उमड़ने
लगता
इसी मध्य न जाने कैसे!
उसकी प्रार्थना मे
मेरी प्रार्थना भी शामिल हो गयी। अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।
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