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Sunday, 2 October 2016

रावण


रावण
रा यानी कि रोशनी।
अपने अन्दर की रोशनी का
हरण होना या 
लुप्त हो जाना ही
रावण है।

दशाननदस मुँख
यानी के अनेक चेहरे
अनेक व्यक्तित्व
विभिन्न परिस्थितियों के
विभिन्न चेहरेविभिन्न आवरण
अनेक आवरणों के भीतर
दब गया मेरा विशुद्ध अपना
व्यक्तित्व...
दर्पण भी नही पहचान पाता है
मेरी अपनी
निर्मल अबोध स्वच्छ छवि

आओइन नकली चेहरों के
दहन से प्रज्वलितन अग्नि
की रोशनी को ग्रहण कर,
आत्मशक्ति की एकाग्र लौ,
से दसों विकारो,
कामकोध्रलोभमोह,
ईष्याद्वेषअहंकार,
छलहठआलस्य
को नष्ट कर

अपने अन्दर की सीतारूपी
आत्मा को अग्नि से पवित्र कर
राम के अंश के समतुल्य 
बनने की कोशिश मे मैं!
और मेरे साथ सारा जन समूह!
और मेरे साथ सारा जन समूह!
                                                                                            अमित


                       मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।


                                                                                             


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