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Saturday, 22 October 2016

धड़कन



अपने ही दिल की
धड़कन नही
सुन पाता हूँ
मैं!
मेरा दिल तोमेरे दिल मे
धड़कता ही नही हैं।
वो तो
कहीं ओर!

उसकी मधुर ध्वनि
सुनाई ही नही देती हैं।
मेरे कानों को...
आड़े जाता हैं
आवरण मै का!

सुनाई देती हैं सिर्फ
एकरसता की
धक-धक-धक
मधुरता के लिए चाहिए 
समर्पण
सिर्फ समर्पण...

कविता में कहना कितना सरल हैं
समर्पण।
कविता में भावना लिखना
कितना सरल है,
भावनायें समझना?

क्षणिक आवेशित भावनाओं के
समुख धरी रह जाती हैं
कविता से उपजी सारी
समझ!
अमित
मेरी कविताए स्वरचित मौलिक है।




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