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Sunday, 2 October 2016

प्यास !



मैं एक छोटे पौधे के
लिए...
बैठा हूँ
उसकी गुड़ाई के लिए
निराई के लिए
फूल खिलने के लिए
जरूरत है !
एक मुट्टी भर धूप की
जो घेर रखी है तुम्हारी
परछाई ने

उसे जरूरत है
दो बूँद पानी की
जो सोख लेती है
तुम्हारी प्यास !


अगर मैं उठ गया
और मेरा सिर
आप की नाक!
से टकरा गया
तो फिर मेरा दोष न होगा।

अमित
              मेरी कविताए स्वरचित  मौलिक है।



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