Pages

Sunday, 19 March 2017

भूल गया हूँ! अपने आप को




भूल गया हूँ! अपने आप को
अजनबी सा हो गया हूँ 
अपने आप से
चिंगारी लगी हैं बारुद में
विनाश को देखते देखते
सो गया हूँ  

सूर्य की किरण को विकास पथ पर,
जाता देख!
सुखद आश्चर्य मे खो गया हूँ।
विकास चरमोत्कर्ष पर
जागा!
अपने आप को...
पहचानने की कोशिश
प्रश्न कौंधा!
कौन हूँ मैं?

आवृत्तिमय विस्फोट,
विस्फोटो के अनवरत
सिलसिलों की गूँज में 
एक बार फिर खो गया हूँ मैं
भूल गया हूँ! अपने आप को

कौन हूँ मैं!
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Monday, 13 March 2017

आह्वान




जब मैं फरहाद* की मानिंद कंधे
पर कुदाल लिए एक मुकाम की नीव
खोद रहा था
तब मेरे चिर परिचित जन  सुरक्षित स्थान
पर खड़े हो इंतजार में थे
कब मै अस्तित्वहीन हो जाँऊ

वास्तव मे मैं अस्तित्वहीन हो ही नही सकता
क्योकि मेरा और मकाम का अस्तित्व
एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं।

अडिग नीव की अट्टालिका से
आवाज लगाता हूँ मैं
आमंत्रित करता हूँ  दोस्तों ।
मेरे स्नेहीजन आओ।
 नेक काम में हाँथ बटाने के लिए

हर रात की चौकीदारी करते-करते
इस महान मुकाम की
भुल-भुलईया मे खो गया  हूँ !

कसम है।
तुम्हें, मेरे दोस्तो  आओ।
नेक काम में हाँथ बटाने के लिए

कही कुदाल को जंग न लग जाये !
क्योंकि अभी और शेष हैं?
अनेक मुकामों की नींव।
अमित
*शीरीं-फरहाद

मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Wednesday, 8 March 2017

होली है



होली, यानी कि
जो हो ली
जो बीत गया, सो बीत गया। 
जो हो चुका, सो हो चुका। 
रात को अंधकार मे जलाते है
रोशनी मे मनाते है
खुशी के रंगों की होली।

पुरानी दुषित द्वेषपूर्ण
स्मृतियों को दहन करना ही
होली है।

अग्नि से उपजी प्रेमपूर्ण
भावनाओ से ओतप्रोत,
संग का रंग लगाते है
उत्साह और उमंग का
गुलाल और अबीर लगाते है
प्रेम की एक नयी सुप्रभात 
का त्योहार है होली।

होली सो होली। 
जो बीत गया. सो बीत गया। 
होली है! होली 

अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Friday, 3 March 2017

अविरल ऊर्जा है- खादी

अविरल ऊर्जा है-  खादी

खादी हाथ से कता सूत या
एक परिधान मात्र ही नही!
अपितु एक विचार-धारा है।
एक सिद्धांत है।खादी

स्वावलंबन  आत्मनिर्भरता
व स्वदेशी तकनीक का
प्रतीक है खादी।
जन गण का आत्मविश्वास व
स्वाभिमान है खादी।
प्रत्येक ईकाई को सम्पूर्ण ईकाई
व आत्मनिर्भर बनाने का
एक प्रयास है खादी

चित्र कोई भी हो खादी के मायने,
वही है,जो कल थेजो आज है
और जो कल भी रहेग़े।
मूल सिद्धांत
आत्मनिर्भरता ही है
जो आज भी प्रासंगिक हैं ।

चरखे का चक्र
अनवरत गतिशीलस्वदेशी तकनीक,
अविरल उन्नति व
विकास का प्रतीक हैं
खादी  चरखा पर्याय एक दूसरे के

समयानुसार विचारधारा में
कुछ संशोधन आवश्यक ही नहीं
अपितु अवश्यंमभावी है
जो जड़ से चेतना का प्रतीक है।

परंतु सिद्धान्त वही है
भूल-भावना वही है 
लाल किले की
प्राचीर पर लहराता तिरंगा
हमारी शान है खादी।

भारत के सपनों का
आकार है खादी।
जन-गण की रगो में
अविरल बहती ऊर्जा है
खादी।



अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।
PSLV-C37 Successfully Launches 104 Satellites in a Single Flight


Wednesday, 1 March 2017

स्टेशन


स्टेशन की भाँति स्थिर हूँ मैं
गाड़ियाँ आती-जाती है
नित्य नये यात्री
एक मैं हूँ
या स्टेशन की बैंच
जो वही कें वही है!

जिस पर जाकर
अक्सर  बैठता हूँ, मैं
अपने अकलेपन के साथ !
देखता हूँ भिन्न- भिन्न प्रकार
के यात्रियों को
लगता है जैसे दुनियाँ भाग रहीं है
धक्कामुक्की ,भीड़ भाड़,
आपा-धापीएक दूसरे को धकेलते  हुये
ट्रेन में चढ़ने की जल्दी 
हबड़ातबड़ीअंदर पहुच कर ,
शायद कोई जंग जीत ली हो ,
आभास होता है चेहरे देख कर
व्यर्थ का शोर गुल हैं 
बाहर,
अंदर है वीराना!
फिर भी न जाने क्यों-
बुनता हूँ कुछ सुनहरे सपने !
स्टेशन की बैंच पर बैठ कर-...
ना वो  टूटती है
ना ही मैं  टूटता हूँ

कभी तो मेरी बारी आयगी !
गाड़ी में सवार होने की
सोच के ये अडिग हूँ मैं 
स्टेशन की भाँति स्थिर हूँ मैं
अपने सपनों के साथ ,
जो पूरे होगें ! अवश्य होगें।


अमित,






प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...