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Sunday, 19 March 2017

भूल गया हूँ! अपने आप को




भूल गया हूँ! अपने आप को
अजनबी सा हो गया हूँ 
अपने आप से
चिंगारी लगी हैं बारुद में
विनाश को देखते देखते
सो गया हूँ  

सूर्य की किरण को विकास पथ पर,
जाता देख!
सुखद आश्चर्य मे खो गया हूँ।
विकास चरमोत्कर्ष पर
जागा!
अपने आप को...
पहचानने की कोशिश
प्रश्न कौंधा!
कौन हूँ मैं?

आवृत्तिमय विस्फोट,
विस्फोटो के अनवरत
सिलसिलों की गूँज में 
एक बार फिर खो गया हूँ मैं
भूल गया हूँ! अपने आप को

कौन हूँ मैं!
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

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