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Monday, 18 December 2017

मन !

मन !



मन तो बच्चा है
कैसा ?
अबोध
चंचलनटखट
जो मेरी बात मानता ही नहीं
तो फिर कोई क्यों?
मेरी बात माने !

मन को आवश्यकता है
दुलार की वात्सल्य की
सर्वकार्यो के साथ-साथ
माँ की प्राथमिकता है
अपना बच्चा
मेरी प्राथमिकता !
मेरा अपना मन... 

मन पर सकारात्मक नियंत्रण
मन से उपजी भावनाओं,
संवेगोंआवेगों का 
स्वतशुद्ध आचरण
जैसे माँ की मीठी लोरी
से शान्त होता बच्चा
वैसे ही मेरा अपना मन 
स्वयं की थपकी से शांत 
पवित्र निर्मल होता 
मेरा मन !

अमित


https://notionpress.com/read/vicharon-ki-avruti




Saturday, 23 September 2017

बेटियाँ- मेरी बेटियाँ


मेरी बेटियों  
प्रफुल्लित जीवन में
अमित सुमन
पल्लवित हो आपके, मेरी बेटियों
अरुषा, नोकेशा, काव्या
पहचान  बनो तुम हमारी
अपने अम्मा-बाबा की
मम्मी –पापा की
चाचा –चाची की
प्रेरणा बनो , आदर्श बनो
अपने भाइयों की
अभिलाषा है मेरी।
नहीं कोई अंतर
बेटा- बेटियों में
संतान सब एक समान
अधिकार है एक समान
फिर क्यों पीछे है?
बेटियाँ !
शायद एक सोच के कारण !
बदलो इस सोच को...
बेटियों.....
भेदना है समाज की कुरीतियों के
इस चक्रव्यूह को
मर्यादा, संयम व संतुलन के साथ
तथास्तु।  
सत्य  के साथ सहयोग है
मेरा सदैव
आयुष्मान भव:, आयुष्मान भव: 

अमित 

Monday, 14 August 2017

15 अगस्त

 15 अगस्त





वार्षिक उत्सवराष्ट्रीय पर्व,
उमंग  उत्साह का पर्व है ।
शहीदो को नमन का त्यौहार है ।
स्वतन्त्रता दिवस ।
समय का एक चक्र पूर्ण हुआ,
मंजिल आई  है,
शुभकामनाएँ-शुभकामनाएँ ।


यह सत्य है कि,
हम हजारों मील चले हैं,
लाखो मील चलना,
अभी शेष है?
भाषण व उद्घोषणा का पर्व नहीं ,
शहीदों के सपने साकार,
करने का दिवस है ।
स्वतन्त्रता दिवस ।

एक संकल्प का पर्व है,
विविधताओं में एकता का पर्व है,
मत-भेद भुला प्रेम का पर्व है,
एक नव संकल्प का पर्व है,
स्वतन्त्रता दिवस ।

कुछ मौलिक अधिकार वर्णित है,
परन्तु कर्तव्य भी वर्णित है ।
उनके प्रति समर्पित रहना
मेरा धर्म ही नही दायित्व भी है ।
प्रत्येक कार्य मे देश हित
सर्वोपरि अभिलाषा है,
स्वच्छ पर्यावरण अच्छा है,
बहुत अच्छा है,
विचारों की स्वच्छता भी,
अत्यन्त आवश्यक है ।

बहुत काम अभी शेष है ।
बन्धुओं!
  
सपनों को सप्राण करने हेतु
विकास चक्र की गति बढ़ानी है ।
गति बढ़ाने में अन्तिम ईकाई
की सेवा का योगदान...
उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि,
प्रथम इकाई के हस्ताक्षर!

महायज्ञ में जो उपेक्षित है
उभार देप्यार दे, सवाँर दे,
देखो
सुप्रभात की किरण आई  है!
शुभकामनाएँ-शुभकामनाएँ...

अमित  

Saturday, 27 May 2017

मेरे गाँव की मधुर स्मृतियाँ

\

खुले मैदान में  
दिन की रामलीला का मंचन,
आसमान में गूँजती रामचरितमानस की चौपाईयां,
खाली लोहे के ढ़ोलो व बाँसो से निर्मित नाव से,  
केवट द्वारा श्रीराम-सीतामैया, लक्ष्मण  को,
पोखर मे नदी पार कराने का रोमांचक दृश्य 
आज भी बरबस याद आ जाता है
अब तो पोखर भी सूख चुकी है !

हमारे घर के तिराहे पर भरत मिलाप का
भाव-विभोर, करुणामय दृश्य, स्मृतिपटल पर
आज भी अंकित है, मानो कल ही बात है ।

दस पैसे के सिंघाड़े
मेरे हाथों व जेबों नहीं समाते थे तब
अब तो रावण जलाने की परंपरा ही शेष है!
शायद !

रात की रामलीला की संवाद अदायगी 
मधुर गीत बीच-बीच में कुछ हास्य दृश्य
बरबस गुदगुदा जाते हैं
पर्दे के पीछे श्रृंगार कक्ष मे
विभिन्न प्रकार के परिधान,
अस्त्र शस्त्र, कलाकारों का श्रृंगार करते ,
जित्तू भैया को टकटकी लगाये देखना ,
तलवार, तीर-कमान, गदा आदि से
खेलना मुझे अत्यंत भाता था, मुझे
रामलीला समिति मे बंधु,
मित्र, कलाकार व पड़ोसी
सब अपने ही स्नेहीजन ...
अत: पर्दे के पीछे व भंडारकक्ष  में
बे-रोकटोक आनाजाना था
दशहरे की छुट्टियो में पूरी मौज-मस्ती...
कभीकभी नाटक प्रतियोगिताएं भी होती थी
श्रवण कुमार, शहीद भगत सिंह,
वीर अभिमन्यु नाटक
सबसे अधिक पसंद ...

रामचरितमानस तो एक पूरी जीवन  शैली  है
श्रवण कुमारशहीद भगत सिंहवीर अभिमन्यु 
बनना हर किसी के
बस की बात नहीं है !
मगर, चाहते हम सब है...
श्रवण कुमार, शहीद भगत सिंह ,
वीर अभिमन्यु, बार-बार जन्म ले,
हर युग मे जन्म ले...
हम सब में कुछ न कुछ अंश है,
महान विभूतियों का 
बस आवश्यकता हैं, साहस की ……
आवश्यक नहीं है कि 
नियति  पूर्व की ही भाँति  हो !

मेरे गाँव की मिट्टी मेरी रगरग में है
अत: इतिश्री भी वैसी ही होगी
जैसा मै चाहूँगा
यही सत्य है ।
आप मानों या न मानों .....

अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Monday, 15 May 2017

बढ़े-चलो


उपहासों विरोधों  से निकल जाएगें
हम सबक़ों डगर पर चला ले  जाएगें
शक्ति -शौर्य  उमंगों से सजे हैं
वीरों के साहस से भरे हैं
हिमाद्रि से सागर की ओर बढ़े हैं
जो ठानी कर गुज़र जाएगें

विवादों से बच निकले हैं
स्वीकृति मार्ग पर चले हैं
विश्वाश –एकता मे बधें हैं
नित्य नयी सृजनता है
आयामों की नवीनता है
जिससे अंकुर पोषित है
पुष्पित है ,प्लवित है
उस विराटता को प्रणाम कर जाएगें\

आओ ! इसको संवार दें
यह मद्दम है , उभार दें
जो उज्ज्वल है, निसार दें
प्रकाश को प्रसार दें,
दीप की लौ , निष्कंप कर जाएगें
हम सबक़ों डगर पर चला ले जाएगें 
अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

Wednesday, 19 April 2017

अतुल्य भारत


उद्यानपेड़ - पौधे, लताएँ-बेले,
अनेक जातियाँ , प्रजातियाँ
भिन्न-भिन्न संस्कृतियाँ,....
अनेक भाषाएँ व बोलियाँ
रीति-रिवाज ,तीज त्यौहार
हजारों प्रकार कें व्यंजन

अलग अलग सभ्यताऐ
अनेक धर्म व संप्रदाय
भिन्न-भिन्न भौगोलिक स्थितियाँ
अमित विभिन्नताओं के वावजूद
एक सामञ्ज्स्य है एक संतुलन है
एक दूसरे की विभिन्नता स्वीकार है
सभी को आत्मसात करने  का दर्शन है
हमारी संस्कृति
ऐसा है हमारा भारतवर्ष

प्रवेश करते ही अनेकता मे एकता की
अद्भुत सुगंध का अहसास,
जिसका वर्णन कर पाना ....
 आपके  बस की बात है
और   ही मेरे।

मेहमान-नवाजी की
नैतिकता की पराकाष्ठा का अहसास
ऐसा  ही पुष्प वाटिका है मेरा
भारत वर्ष

परंतु आज !
भिन्न-भिन्न स्वर व सुर
सामञ्ज्स्य व संतुलन का अभाव
आत्मसात करने की शक्ति का अभाव
असहनीय अनैतिकता का अहसास

कुछ स्वार्थी तत्वों द्वारा, 
अपने हितों के अनुसार...
धर्म व पंथ की तुष्टिकृत व्याख्या व विवेचना !
दूसरों के अस्तित्व को नकारना
फलस्वरूप...
जगह जगह मासूमों के रक्त से
रक्त रंजित  भूमि ...


क्या ऐसा ही हम चाहते हैं ?
नहीं ! कदापि नहीं ।
किसी एक  धर्म व पंथ
या विशेष व्यक्तित्व की
बपौती या विरासत नहीं हैं
मेरा भारत वर्ष,
हमारा भारत वर्ष

कण- कण पर मेरा भी उतना ही
अधिकार है
जितना, प्रथम बिन्दु का !
हमारी, हम सबकी एक सांझी
संस्कृति व विरासत हैं ।
अतुल्य भारतजय हिन्द 
जय भारत  
अमित
 मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।



प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...