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Monday, 29 August 2016

संवाद


तकरार--इश्क मे
न हुयी कोई गुफ्तगु,
हमने वो सुना,
जो उन्होने कहा ही नहीं।
उन्होने वो सुना,जो कहा ही नहीं। 


तकरार--इश्क मे
हमने वो सुना,
जो दिल ने सुनना चाहा।
उन्होने वो सुना,
जो हमने कहना चाहाही नहीं।


इकरारे-इश्क-मे,
उनकी आँखों से,वो ख्वाब देखे,
जो कभी पूरे हुए ही नही।
उनकी आहटो में वो गीत सुना,
जो कभी गायागया ही नहीं।
                               


इकरारे-इश्क-मे,
उन्होने वो कविता सुनी,
जो हमने कभी लिखी ही नहीं।


अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।





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