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Tuesday, 23 August 2016

बिन्दु





मैं एक बिन्दु हूँप्रथम बिन्दु
हाँ!
प्रथम बिन्दु
जिसने दिये रेखा को ...
निरन्तर नये आयाम
मगर आज!
स्थिर है अपेक्षित है
अलग-थलग है
जर्जर स्थिति मे है

बिन्दु
झुलस रहा है
जंगल की आग मे
इक्कठे हो जाते है
बुझाने जंगल की आग
सहमजाते है देख
हजारो होलियाँ
पर्यटकों को लगता है रात में
अद्भुतसुन्दर अति सुन्दर!

बर्फ मेगिरता है जब
किसी कंधे पर फंगा,
विघुत रहित उपकरणों से
सुसज्जित चिकित्सालय है
चिकित्सक विहीन!
ले जाते है
एक जिंदा अर्थी को
बर्फ मे घंस कर
पहाड़ी के उस पार..

अतिवृष्टि मे उफनती है
जब नदियाँ....... 
फिर भी प्यासा है बेचारा पहाड़!

भूस्खलन में खिसकता है
जब मेरा घरबह जाते है
मिट्टीलकड़ीपत्थर
फिर भी शेष रह जाता है
कर्ज!

द्रुपद की गायें भी है
बिन चारे के,
होम साम्रगी विहीन
वेद शालायें भी है
इस देव स्थली में...
डाकियाँ...
एक भावपूर्ण अर्थ लिए
जो जोड़ता है मुझे
अपनों की संवेदना से
सूचना मिलती है
सूचना निष्प्रयोजन होने पर!

फिर भी मैं खुश हूँ
यहाँ अपनी रोटी के साथ
मैं एक बिन्दु हूँप्रथम बिन्दु
हाँ!  प्रथम बिन्दु

अमित
मेरी कविता स्वरचित है।


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