Pages

Monday, 8 August 2016

लिहाफ़




सर्दी हो या गर्मी,
लिहाफ़ ओढ़ कर 
चल रहे है हम
कच्छप के मानिंद,
आवश्यकता पड़ने पर
अपना सर छिपा कर ,
चल रहे हैं हम
              

भय से ग्रस्त 
अपनी दुनिया को
लिहाफ़ में समेट लेते है हम

लिहाफ़ ओढ़कर सुरक्षित होने का
भ्रम!,
और भूल जाते है
कच्छप नहीइन्सान है हम।

अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।

No comments:

Post a Comment

प्रवासी मजदूर!

प्रवासी कौन है ? प्रवासी का शाब्दिक अर्थ है जो अपना क्षेत्र छोड़ काम धंधे के लिये, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में  में निवास करता है अर्थात...