श्वेत दिन और श्याम रात
के अतिरिक्त
मेरे पास अन्य कोई रंग नही है!
मगर सबको विश्वास है
अटूट विश्वास है!
धरती से अम्बर तक
रंगों को उत्सर्जित करने की
अपार असीम ऊर्जा
अपने अन्दर समटे हुए हूँ
मैं!
प्रेरित करते है मुझें,
मेरे अपने स्वजन
मेरे अपने स्वजन
रंगों से सरोबार तूलिका को
पकड़ने के लिए,
लेकिन, अँगुली से स्पर्श कर
लेकिन, अँगुली से स्पर्श कर
बल्व जलाने की कोशिश करता हूँ
मैं!
परंतु क्या यह संभव है
शायद नहीं !
लेकिन कभी सोचता हूँ
यह हो भी सकता है
अगर अपनी समस्त ऊर्जा को
एकाग्र कर एक बिन्दु पर केन्द्रित करे,
तो सब संभव हो सकता है ।
और शायद यही उनका विश्वास है
परंतु क्या यह संभव है
शायद नहीं !
लेकिन कभी सोचता हूँ
यह हो भी सकता है
अगर अपनी समस्त ऊर्जा को
एकाग्र कर एक बिन्दु पर केन्द्रित करे,
तो सब संभव हो सकता है ।
और शायद यही उनका विश्वास है
अटूट विश्वास है।
अमित
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मेरी
कविता स्वरचित व मौलिक है।
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