तकरार-ए-इश्क मे
न हुयी कोई
गुफ्तगु,
हमने वो सुना,
जो उन्होने कहा
ही नहीं।
उन्होने वो
सुना,जो कहा ही नहीं।
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तकरार-ए-इश्क मे
हमने वो सुना,
जो दिल ने सुनना चाहा।
उन्होने वो सुना,
जो हमने कहना चाहा, ही नहीं।
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इकरारे-इश्क-मे,
उनकी आँखों से,वो ख्वाब देखे,
जो कभी पूरे
हुए ही नही।
उनकी आहटो में वो गीत सुना,
जो कभी गाया, गया ही नहीं।
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इकरारे-इश्क-मे,
उन्होने वो
कविता सुनी,
जो हमने कभी
लिखी ही नहीं।
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अमित
मेरी कविता स्वरचित व मौलिक है।