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Sunday, 24 July 2016

कौन कहता है? मैं अकेला रहता हूँ !

    
कौन कहता है !
मैं अकेला रहता हूँ
पहाड़ो पर...
अप्रतिम सौन्दर्य 
की छाँव तले रहता हूँ
बर्फीली हवाओ व देवदार के
संग रहता हूँ
ओलावृष्टि मे मोतियों की
सेज पर चलता हूँ
बादल का पहाड़ी से 
आलिंगन देख
आश्चर्य चकित रह जाता हूँ

बारिश मे घुली
षोडशी प्रकृति के श्रृंगार को
टकटकी लगायें,
देखता रहता हूँ।
रश्मिरथी के उदयाचल पर  
आरूढ़ होते ही
चाँदी से चमकते हिमालय को देख ललचा जाता हूँ
सूर्यास्त...
रक्त नीलाभ अम्बर को देख
न जाने कहाँ
खो जाता हूँ
रंग बिरंगी कलियां,फूल वृक्षों 
के साथ खेलता हूँ
हिमालय सी नीली आँखों की
प्रतिक्षा मे रहता हूँ
यहाँ आने से पहते
गेहू की लहलाती फसल मे
अनाज के दाने को
बहुत दूर से देखा है!
जीने के लिए जरूरी है...
कविता और रोटी
जो मैने पायी है
पहाड़ों पर,
तो फिर कैसे कह दूँ
मैं अकेला रहता हूँ
पहाड़ो पर !
अमित
मेरी कविताए स्वरचित व मौलिक है।



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